Shodashi - An Overview

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Inspiration and Empowerment: She's a symbol of strength and braveness for devotees, particularly in the context on the divine feminine.

नवयौवनशोभाढ्यां वन्दे त्रिपुरसुन्दरीम् ॥९॥

आर्त-त्राण-परायणैररि-कुल-प्रध्वंसिभिः संवृतं

Essentially the most revered among the these would be the 'Shodashi Mantra', which can be mentioned to grant each worldly pleasures and spiritual liberation.

Shodashi’s energy fosters empathy and kindness, reminding devotees to approach Many others with knowledge and compassion. This reward encourages harmonious interactions, supporting a loving method of interactions and fostering unity in loved ones, friendships, and Group.

ईड्याभिर्नव-विद्रुम-च्छवि-समाभिख्याभिरङ्गी-कृतं

षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी का जो स्वरूप है, वह अत्यन्त ही गूढ़मय है। जिस महामुद्रा में भगवान शिव की नाभि से निकले कमल दल पर विराजमान हैं, वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदर्शित करती हैं और जिससे उनके कार्यों की और उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है।

संरक्षार्थमुपागताऽभिरसकृन्नित्याभिधाभिर्मुदा ।

भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप get more info वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।

सावित्री तत्पदार्था शशियुतमकुटा पञ्चशीर्षा त्रिनेत्रा

Often known as the goddess of knowledge, Shodashi guides her devotees toward clarity, insight, and better knowledge. Chanting her mantra enhances instinct, aiding men and women make clever selections and align with their internal fact. This reward nurtures a life of integrity and objective.

सर्वोत्कृष्ट-वपुर्धराभिरभितो देवी समाभिर्जगत्

ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं तां वन्दे सिद्धमातृकाम् ॥५॥

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥

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